Monday, September 12, 2016

राहत इन्दोरी की प्रसिद्ध शायरियों का संकलन(भाग:3)

बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा

चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी  सरकार में आ जाएगा
______________________________

नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं

जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
______________________________

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

मोड़  होता हैं जवानी का संभलने  के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं

_____________________________

साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम

उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम

_____________________________

इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने  के लिए काफी हूँ

हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ

एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ

No comments:

Post a Comment

माझे नवीन लेखन

खरा सुखी

 समाधान पैशावर अवलंबून नसतं, सुख पैशानं मोजता येत नसतं. पण, सुखासमाधानानं जगण्यासाठी पैशांची गरज पडत असतेच. फक्त ते पैसे किती असावेत ते आपल्...