बेवजह सरहदों पर
इल्जाम है बंटवारे का,
लोग मुद्दतों से
एक घर में भी अलग रहते हैंl
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सिखा दिया है जहां ने
हर जख्म पर हंसना
ले देख जिंदगी
अब हम तुझसे नहीं डरते...
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इंसान की इंसानियत
उसी समय खत्म हो जाती है
जब उसे दूसरों के दुख में
हँसी आने लगती है...!!
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ऐसा नहीं था के
हम चिराग नहीं थे...!
बस कमी ये थी
हम उजालों में जले...!!
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जमाना "वफादार" नहीं
तो फिर क्या हुआ...
"धोखेबाज" भी तो
हमेशा अपने ही होते हैं.....
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वो रो पड़ा आज
माँ का ख़त पढ़ कर..
जिसमे लिखा था...
अब तो गाँव आया करना बेटा..
सड़कें पक्की हो गई है...
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देखना कभी नम न हो
घर के बुजर्गों की आँखें,
छत से पानी टपके तो
दीवारें कमज़ोर होती हैं...
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फर्क बहुत है
तेरी और मेरी तालीम में,
तूने उस्तादों से सीखा है
और मैंने हालातों से...
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Monday, April 23, 2018
Shayari
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