Wednesday, January 3, 2018

मौत से ठन गई - अटल बिहारी वाजपेयी

मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई! 
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई। 
मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? 
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा। 
मौत से बेख़बर, जिन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। 
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। 
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी हैं कोई गिला। 
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिये। 
आज झकझोरता तेज़ तूफान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है। 
पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफाँ का, तेवरी तन गई। 
मौत से ठन गई।
 - अटल बिहारी वाजपेयी

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