Saturday, August 24, 2019

" मैं हैरान हूँ "

" मैं हैरान हूँ "

-महादेवी वर्मा

मैं हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने उंगली नहीं उठाई
तुलसी दास पर ,जिसने कहा :-
"ढोल ,गवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"

मैं हैरान हूं
किसी औरत ने
नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां।

मैं हैरान हूं
किसी औरत ने धिक्कारा नहीं
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी को
जिसने परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर।

किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण।

मै हैरान हूं यह सोचकर
किसी औरत ने किया नहीं
संयोगिता_अंबा - अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक!

और मैं हैरान हूं
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती है मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर।

मैं हैरान हूं
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा?
***

(महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय (तथाकथि उदात्त) संस्कृति पर गहरी चोट करती है.

संग्रहित कविता

No comments:

Post a Comment

माझे नवीन लेखन

खरा सुखी

 समाधान पैशावर अवलंबून नसतं, सुख पैशानं मोजता येत नसतं. पण, सुखासमाधानानं जगण्यासाठी पैशांची गरज पडत असतेच. फक्त ते पैसे किती असावेत ते आपल्...