दिनांक 18 दिसम्बर 1945 को केरिपुबल की दो प्लाटूनों (तत्कालीन क्राउन रिप्रेटेटिव पुलिस) को श्री षेर ज़ामां खान की कमान में जयपुर, जोधपुर और किषनगढ़ राज्य में सक्रिय खतरनाक डाकुओं को पकड़ने के लिए किषनगढ़ राज्य में भेजा गया था। 7 में से 2 डाकू दूसरी बार जेल से भाग गये थे और उन्होंने 2 सिपाहियों को मार डाला था। इन डाकुओं ने 13 डकैतियां की थीं और 7 लोगों को मार डाला था। 24 फरवरी 1946 को मिली जानकारी के आधार पर केरिपुबल की कुछ टुकड़ियों ने किषनगढ़ राज्य में कुछ झोपड़ियों के समूह में प्रवेष किया। जैसे ही नायक पाता राम आगे बढे़ उनकी ओर फायर आया जिसमें वह बच गए और उन्होंने अन्य जवानों के साथ जवाबी कार्रवाई की। झोपड़ियों की घेराबंदी करने के लिए सिपाही सोडा राम उत्तर-पष्चिम दिषा से आगे बढे, लेकिन वह गोली लगने से घायल हो गये। घायल होने क बावजूद वह तब तक फायर करते रहे जब तक कि सिपाही सुता राम और सिपाही गंगा अपनी जान जोखिम में डालकर गोलियों के बौछार के बीच उन्हें वहां से ले नहीं गए। जवानों की गोलियों से एक डाकू घायल हो गया लेकिन वे घबराये नहीं तथा गोलीबारी करते रहे। बाद में षेर ज़ामां खान ने झोपड़ियों को आग के हवाले कर देने की धमकी दी और डाकुओं से समर्पण करने को कहा जिसके परिणामस्वरूप डाकू समर्पण को तैयार हो गए और उन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। 2 खतरनाक डाकू गिरफ्तार किए गए तथा उनसे 12 बोर डीबीबीएल, 1 मसकेट, 12 बोर की 6 गोलियां और .303 की 17 गोलियां भी बरामद किए गए थे। बाद में सिपाही सोडा राम गंभीर रूप से जख्मी होने के कारण वीरगति को प्राप्त हुए। उनके द्वारा प्रदर्षित असाधारण वीरता, साहस और पराक्रम के लिए श्री षेर ज़ामां खान कार्यवाहक पुलिस उपाधीक्षक और नायक पाता राम को किंग्स पुलिस पदक तथा सिपाही बभूता राम, सिपाही गंगा राम और सिपाही सोड़ा राम (मरणोपरांत) को इंडियन पुलिस मेडल से अलंकृत किया गया।
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