भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय जब पूरे देश में दंगे भड़के हुए थे सेना का भी विभाजन हो रहा था , 10 वीं बलूच रेजिमेंट के अधिकारी उस्मान ने हिन्दुस्तान में ही रहने का फैसला किया जबकि उसके सभी मुस्लिम साथी पाकिस्तान जा रहे थे ।बहुत कम लोगों को पता होगा कि उन्हें पाकिस्तानी हुक्मरानों ने ब्रिग्रेडियर उस्मान को सेना का प्रमुख बनने का भी आफर दिया गया था लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया ।विभाजन के बाद उस्मान डोगरा रेजिमेंट में चले गए ।
(1999 कारगिल युद्ध मे दुश्मन की बंदूक छीनकर दुश्मन को मारनेवाले राइफ़लमैन संजय कुमार)
नौशेरा का शेर और पाकिस्तान की हार
मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजे गए ब्रिग्रेडियर उस्मान को आजादी के तीन महीने बाद कश्मीर के झांगर में तैनात 50 पैराशूट ब्रिगेड को कमांड करने के लिए भेजा गया था ।इसके पहले की उस्मान पहुँचते आश्चर्यजनक तौर से पाकिस्तानी सेना गैरिसन की तैनारी से घबरा गई और लगभग 6 हजार सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर कब्ज़ा कर लिया था ।बगल में ही नौशेरा सेक्टर था उस्मान ने नौशेरा को दुश्मन से बचाए रखने के लिए जबरदस्त व्यूह रचना रची उन्होंने सबसे पहले उत्तर दिशा में स्थित कोट पहाड़ी को पाकिस्तानियों के कब्जे से मुक्त कराया यह वो पहाड़ी थी जिससे समूचे नौशेरा पर निगाह रखी जा सकती थी । बिग्रेडियर उस्मान के सफल नेतृत्व में एक फरवरी 1948 को भारतीय सेना ने कोट और नौशेरा के आस पास के इलाके पर आक्रमण किया और सुबह तक समूचे नौशेरा पर अपना कब्ज़ा जमा लिया ।सबसे जबरदस्त सफलता तब मिली जब फरवरी 1948 के अंतिम सप्ताह में लेफिटनेंट जनरल के एम् करियप्पा के नेतृत्व में बनाई गई योजना का सफल क्रियान्वयन करके बिग्रेडियर उस्मान ने झांगर पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया ।ब्रिग्रेडियर उस्मान की वीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समूचे कश्मीर में उन्हें नौशेरा का शेर कहा जाता था ।
मैं मर रहा हूँ लेकिन हमारा इलाका हमारा है
झांगर पर ब्रिग्रेडियर उस्मान का कब्जा पाकिस्तान के बर्दाश्त के बाहर था । झांगर पर हिन्दुस्तानी कब्जे के बाद वो बार बार उसपर दुबारा कब्जे की योजना बनाता रहा पाकिस्तान ने मई 1948 में अपनी नियमित सेना झांगर के पास लगा दी । 3 जुलाई 1948 को झांगर में भीषण युद्ध हुआ जिसमे एक हजार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और लगभग उतने ही घायल हुए इधर ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व वाली 50 पैराशूट ब्रिगेड के महज 33 जवानों की मौत हुई और 102 घायल हुए उसी युद्ध के दौरान 25 पाउंड का एक शेल मेजर उस्मान के ऊपर जा गिरा और भारत माँ का यह बेटा शहीद हो गया ।
( भारतीय वायुसेना के पहले परमवीर चक्र विजेता फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों )
ब्रिगेडियर उस्मान के आखिरी शब्द थे मैं मर रहा हूँ लेकिन हमारा इलाका हमारा है, हम दुश्मन के गिर जाने तक लड़ेंगे । ब्रिगेडियर उस्मान की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी ने उनके सर पर पूरे 50 हजार रुपयों का इनाम रखा था।
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