Friday, July 7, 2017

टाइगर ऑफ जाफना : मेजर रामास्वामी परमेश्वर

          मेजर रामास्वामी परमेश्वर, का जन्म 13 सितंबर 1 9 46 को बॉम्बे में हुआ था। 1 9 71 में, जब भारत पाकिस्तान से लड़ रहा था, तब वे चेन्नई में officer's training academy में शामिल हो गए और 1 9 72 में passout हो गए। उन्हें 15 महार में नियुक्त किया गया और उन्होंने आठ साल तक वहां की सेवा की।
मेजर परमेश्वरन को 8 महार के लिए चुना गया था, जो कि भारतीय सेना की पहली सैन्य टुकड़ी थी जिसे श्रीलंका में भारतीय शांति-रक्षा बल (आईपीकेएफ) के भाग के रूप में उतरा गया , क्योंकि वह तमिल में बोल सकते थे। सेना ने अपना काम शुरू किया। शुरुआत में शांति सुनिश्चित करने और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने के  काम आर्मी को सौंपा गया था। परन्तु आर्मी को शत्रु से  पूर्ण बल से लड़ना पडा।
ऑपरेशन पवन में 91 इन्फैन्ट्री ब्रिगेड, 54 इन्फैंट्री डिवीजन के हिस्से के रूप में भाग लेते हुए, 8 महारों में शामिल होने के एक महीने और 20 दिन बाद, परमेश्वर के कंटारोडई की लड़ाई में शहीद हो गए ।

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         श्रीलंका का उत्तर जाफना इलाखा, 24 नवंबर 1987 समय रात 7 बजे है। उत्तरी जाफना, श्रीलंका के आकाश में बारिश के बादलों के साथ अंधेरा होता है ,उसी वक्त अल्फा कंपनी के लोग, 8 महार, कंटारोडाई की ओर बढ़ते हुए अपने हाथों में सेल्फ-लोडिंग राइफलों के साथ तैयार होते हैं। इन्हें यूडुअल गर्ल्स कॉलेज में तैनात किया गया था। अब भारतीय सेना का एक पथक गश्त लगाने के लिए  बाहर जाता हैं । क्योंकि सेना को सूचना मिल जाती  है कि शस्त्रास्त्रों और गोला-बारूद का एक बडा  कंटनेर कंटारोडई गांव के सिरमैन, धर्ममालम नामक एक आदमी के घर में उतार दिया जा रहा है। इसलिए 10 सैनिकों की गश्ती टुकड़ी की अध्यक्षता कैप्टन डीआर शर्मा संभालते है,कैप्टन दी आर शर्मा  भारतीय सेना की टुकड़ी के सेकंड इन कमांड थे ।
 
        सैनिक  चुपचाप बिना किसी आवाज  के अपने लक्ष्य की और चलते हैं, अंधेरे में अपने लक्ष्य के रास्ते पर भारतीय सैनिक जैसे आगे बढ़ते  हैं, कैप्टन शर्मा को यह महसूस रहा है कि उन्हें एलटीटीई द्वारा देखा जा रहा है। कैप्टन शर्मा ने अपनी कंपनी के कमांडर मेजर परमेश्वरन  साहब को बताया कि उनके सैनिकों पर मंदिर से एलटीटीई के आतंकवादियों द्वारा गोलीबारी की जा रही  है , और उग्रवादीयोकी ताकत (संख्या) अपेक्षा से अधिक बडी है।

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          मेजर परमेश्वरन को दो माह से कम समय में 8 महार में तैनात किया गया था। और वो दिन के दौरान quarter master  काम देख रहे थे। जैसेही कैप्टन शर्मा द्वारा उन्हें सूचना मिल मेजर परमेश्वरने 20 जवानों और जेसीओ संपत सैबल के साथ गश्त पर निकलते है ,और पहले गश्ती दल जो कैप्टन शर्मा के कमांड में उग्रवादीयोके साथ लड़ाई कर रहक था उस दल के मद्त के लिये उनके साथ जुड़ जाते  है।

            आधी रात के आसपास  जब 30 सैनिकों की संयुक्त गश्ती दल कंटारोडाई की ओर बढ़ने लगती है। बारिश शुरू हो जाती है और सैनिकों ने उनकी बंदूक की बैरल को पॉलिथीन शीट्स के साथ कवर करते है। 1.30 बजे सुबह, गश्ती दल धर्मालिंगम के घर तक पहुंचता है और इसे घेरता है। कोई भी आतंकवादी गतिविधी नहीं पाया जाती है, लेकिन वे एक पुराने ट्रक को पास में खड़ी दिखते हैं । यह संधिक्त अवस्थामें खड़ा ट्रक हथियार की खेप की रिपोर्टों की विश्वसनीयता को सच साबित करता है।  सैनिक अंधेरे में आक्रमण करने के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की प्रतीक्षा करते है ।

      लगभग 5.30 बजे, मेजर परमेश्वरन घर की खोज करने का फैसला करते हैं। जबकि शेष बाकी सैनिकों हमले के लिए अपनी पोजीशन लेकर तयार होते है ।मेजर परमेश्वरन, कैप्टन शर्मा और रेडियो ऑपरेटर दिलीप मास्के उस घर के अंदर जाते हैं और धर्मलिंगम और उनके परिवार को बाहर ले आते हैं। लेकिन यहां सैनिकों को  खोज की जाने वाली कोई भी संदिग्ध चीज कुछ नहीं मिलती है और यह तय किया जाता है कि गश्ती दल मुख्यालय वापस आ जाएगी। अधिकारियों ने एक सुनसान घर में आश्रय किया और उन मार्गों पर चर्चा की जो वापस जाने के लिए उठाए गए थे, फिर से कंधारोडाई-उदुविल सड़क पर फैसला कर रहे थे क्योंकि वे दलदलीय इलाके से बचने के लिए चाहते थे जहां एलटीटीई के हमले की उम्मीद होती है।

             वो सड़क एक तालाब के पास से जाती है जिसके आसपास  तीन और मंदिर  है, जहां एलटीटीई के आतंकियों ने छुपे होने की आकांशा है ... सुबह 6.30 बजे है और  थका हुऐ , बारिश से भिगे और नींद से वंचित सैनिक तालाब के किनारेसे गुजर रहे हैं। तभी उग्रवादियों की हेवी मशीन गन की गोली (एचएमजी) से एक सिपाही जीवन आठवले जखमी हो जाता है । सिपाही जगन लाल, जो उनके पीछे है, एक आतंकवादी को गोली मारता है , लेकिन सिपाही  प्रकाश उग्रवादियों  की गोली बारी में फंस जाता हौ।  इस समय, पूरे गश्ती को तोड़ते के लिए आतंकियों ने सभी तीनों मंदिरों में से सैनिकों पर हमला करना शुरू करते है। इसतरह भारतीय सैनिकों को सभी दिशाओं से भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ता है।

          अचानक हुए इस हमलेमे कैप्टन शर्मा और संपत साहब, उनके कॉलम के साथ,भारी गोलाबारिमे फंस जाते है। रेडियो ऑपरेटर विद्यासागर डोंगरे और रमेश आठवले गोलाबारिमे  में घायल हो जाते है ; सिपाही राजन जो हमलावरों की गोलीबारी का जवाब मोर्टार फायर के  हमले साथ वापस करने की कोशिश कर रहे था  उसे आतंकवादीयोके  एक हैंडग्रेनेड से हुए विस्फोट में जगह पर मरता है। एलएमजी को संभालने वाले सिपाही गणेश कोहले को भी आतंकवादी  गोली मार देते है। एलटीटीए के आतंकवादी एके -47, ग्रेनेड, विस्फोटक और घातक एचएमजी का उपयोग कर रहे थे।

      मेजर परमेश्वरन उस समय कुछ दूरी पर आतंकवादीयोंसे लड़ रहे थे। वो आंतकवादीयोंके इस हमले फसे अपने सैनिकों को देखकर सैनिकों को बचाने के लिए अपने  कदम उठाते है। अपने साथ 10 सैनिक  लेकर, मेजर परमेश्वरन आगे बढ़ते है सिपाही राजकुमार शर्मा और नायक पांडुरंग ढोबले उनके साथ हैं, लेकिन मेजर परमेश्वरन की यह टुकड़ी उन पर आने वाली तीव्र फायर से बिखर जाती है। मेजर परमेश्वरन पीछे जाने से इंकार कर देते है और, अपनी सुरक्षा की कोई चिंता न करके क्रॉल ( crawls)करते आगे बढ़ते है । एक जगह जहां कई पेड़ों को लगभग पांच फीट तक काट दिया गया था। एक पेड़ के पीछे कवर लेकर, मेजर परमेश्वरन अपनी एलएमजी से आतकवादियोंको जवाब देते है। थोड़ी देर बाद वह एलटीटीई आतंकवादियों महसूस करते हैं कि वे आतकंवादियोंसे घिरे हुए हैं।

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         ठीक उसके बाद, एक आतंकवादी  एक नारियल के पेड़ के पीछे रहकर आतकवादियोंको मारनेवाले मेजर परमेश्वरन पर हमला करता है। मेजर परमेश्वरन को भारी चोट आती है।अपनी चोट को अनदेखा कर मेजर परमेश्वरन अपने पास आनेवाले देखते हुए, उस आतंकवादी से उसका  हथियार को छीन लेते है और उसे गोली मारते है। उसकेसाथ ही अपने सैनिकों को हमला जारी रखने का आदेश भी देते है।

      एक बार फिर से आंतकवादी मेजर परमेश्वरन पर हमला करते है। और इस हमले में मेजर परमेश्वरन एक और गोली छाती में लग जाती है । और वो नीचे गिर जाते है। जब उसने  शरीर को एक घंटे बाद लगभग कैप्टन शर्मा ने बरामद किया, तो उनकी घड़ी उसके पास कुछ दूरी पर पड़ी थी ।  घड़ी  8.10 बजे बंद हो गई थी।।  हालांकि उनके बहादुर कमांडर मेजर परमेश्वरन के बलिदान से  उनके छह जवान प्रेरित होते हैं और फिर से लड़ना जारी रखते हैं।भारतीय सैनिकों के  इस हमलेसे आतंकवादियों के बिखरने लगते हैं। और अपने ठिकाने से भाग जाना शुरू कर देते है।  इस हमले में छह आतंकवादी मारे जाते है। और एक अधिक संख्या में घायल हो जाते है ।

        8 महार अपने कमांडर मेजर परमेश्वरन ,नायक अप्णा सरजे, राजन लाल और मिलिंद कोहल को खो देता है, जबकि नौ अन्य घायल हो जाते हैं। बहादुरी, अनुकरणीय नेतृत्व और कमान के उनके महान कार्य के लिए, माजर परमान्स्वर को मरणोपरांत राष्ट्र की सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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संपादक की डेस्क से

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