1971 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था।
14 दिसम्बर 1971 को वायुसेना के फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों श्रीनगर में सेवारत थे। पाकिस्तानी वायुसेना के हमलों से कश्मीर घाटी की रक्षा का दायित्व सेखों और उनके साथियों के कन्धों पर था। अचानक समाचार आया कि छह पाकिस्तानी लड़ाकू सेबर विमान भारत सीमा को पार कर चुके हैं। इससे पहले कि भारतीय वायु रक्षापंक्ति सक्रिय हो पाती, पाकिस्तानी विमान सर पर आ चुके थे।
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किसी तरह सेखों के एक वरिष्ठ संगी अपना विमान हवाई पट्टी से उड़ा ही पाए थे कि दुश्मन के विमानों ने हवाई पट्टी पर बमबारी शुरू कर दी। सेखों ने फिर भी दुश्मन से लोहा लेने का मन बना लिया और अपने विमान को उड़ाने के प्रयास में लग गए। उनके अगल बगल गिरते बम, और क्षतिग्रस्त हवाई पट्टी एक बड़ी कठिनाई बन चुकी थी। सबको चकित करते हुए किसी प्रकार उनका नेट विमान हवा में आया।
अब सेखों के सम्मुख चुनौती का आँकलन करिये। दुश्मन के छह विमानों के सामने वे अकेले थे। दुश्मन के विमान विख्यात सेबर (सबरे) थे जो विस्तार और हमले की क्षमता में गनत विमान से कहीं बेहतर थे। हवाई पट्टी क्षतिग्रस्त होने के कारण अतिरिक्त सहायता की अपेक्षा की नहीं जा सकती थी। परंतु अगर सेखों दुश्मन के रास्ते से हट जाते तो दुश्मन को अपनी मनमानी करने से कोई नहीं रोक सकता था।
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सेखों ने वही किया जो उन्हें इतिहास में अमर बना देता। उन्होंने दुश्मन को ललकारा और बिजली की तरह उन पर टूट पड़े। दुश्मन का एक विमान अग्नि को समर्पित कर दिया, और दूसरे विमान पर ध्यान केंद्रित किया। दूसरे दुश्मन के पीछे उड़ते हुए सेखों ने उस पर निशाना साधा। पाकिस्तानी लड़ाके इस अनापेक्षित आक्रमण से अवाक थे। बाकी चार लड़ाकों किसी प्रकार सेखों के पीछे उड़ते हुए निशाना साधने का प्रयास करने लगे। सेखों ने परिस्तिथि भाँपी और उनके निशाने से बचते हुए दूसरे विमान पर आक्रमण जारी रखा। दूसरे विमान पर निशाना पक्का था और वह क्षतिग्रस्त हो कर धरती की ओर गिरने लगा। अब सेखों को अपनी रक्षा की चिन्ता करनी थी। परन्तु चार विमानों के संयुक्त आक्रमण से बच पाना असंभव था। काफी देर तक दुश्मन को छकाने के उपरान्त उनका विमान क्षतिग्रस्त हो गया और उन्होंने वीरगति प्राप्त की।
सेखों का आखिरी संदेश
दुश्मन के जहाजों को निशाने बनाते हुए सेखों ने पाकिस्तानी वायुसेना के जहाजों को एक-एक कर ध्वस्त करने की शुरुआत की। रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। सेखों ने बताया था कि 'मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ...मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा...'। इसके कुछ ही देर बाद आसमान में तेज धमाका हुआ और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया।
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इसके बाद निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपने संदेश में बताया कि उन्हें इस मुकाबले में बहुत मजा आ रहा है और दो सेबर जेट विमान उनके आसपास है जिनमें से एक उनके साथ चल रहा है और दूसरे का वह पीछा कर रहे हैं। इसके कुछ ही देर बाद एक और सेबर जेट सेखों के विमान का शिकार हुआ। इसके बाद सेखों ने दूसरे विमान को भी ध्वस्त कर दिया। इसके बाद सेखों का आखिरी संदेश आया कि...
'शायद मेरा नेट भी दुश्मनों के निशाने पर आ गया है... घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।' यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम संदेश था। उसके बाद निर्मलजीत सिंह सेखों बीरगति को प्राप्त हो गए।
बाद में जिस पाकिस्तानी लड़ाके ने सेखों के विमान को मार गिराया था, उसने खुले तौर से सेखों के साहस और विमान कौशल की प्रशंसा की।
आज तक 21 बार हमारी सेना के महावीरों को उनके अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र प्रदान किया गया है। 21 में से 20 परमवीर चक्र थलसेना ने अर्जित किये। निश्चित मृत्यु के सम्मुख सेखों ने जिस वीरता और युद्ध कौशल को प्रदर्शित किया उसके कारण फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों वायुसेना के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता बने।
भारतीय वायुसेना के इस परमवीर विजेता को सलाम।
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