प्रिय पाठको
स्वप्नवेल ब्लॉग्स्पॉटके साथ remembering and never forget our hero's इस लेखमाला मैं हमने यह कोशिश की है की, सन १९४७ से लेकर सन १९९९ तक (आजतक) जिन्हें परमवीर चक्र मिला है , उन सैनिकों की कहानियां हम आपके सामने लेकर आ सके।
इन कहानियों में लगभग सभी सैनिक अपने २१ से ३० साल की उम्र में ही यह सम्मान प्राप्त कर चुके है।
अधिकतर सैनिकोंको यह सम्मान मरणोपरांत मिला है। वो सैनिक भले ही आज हमारे बीच नही है, लेकिन उनकी वीरता ये गाथा हमे सदैव प्रेरणा देती रहेगी। उनकी सुजबुज , देश के लिए दुश्मन से लड़ने का जज्बा, अपने जान से ज्यादा अपने साथी सैनिकों के जान की सबसे ज्यादा फिकर करना, ऐसी कई बातें है, जिनको सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
कितनभी कठिन परिस्थितिया हो, चाहे दुश्मन १० की संख्या में हो 10000 की यह सैनिक उन्हके सामने एक चट्टान की तरह खड़े रहे थे।
सिर्फ वो थे, वो है ,और वो रहंगे , इसलिए हम और आप सभी भारतीय सुखुन भरी जिंदगी जी पाते है। हम सैनिक नही है तो क्या हुआ हम अपने जीवन मे भी अगर अपना हर काम पूरी ईमानदारी के साथ कर सकते तो भी यह हमारी एक देश सेवा साबित होगी। और यही एकमात्र तरीका है, उन्ह सैनिकों के त्याग का मोल चुकाने का?
आपको क्या लगता हैं???????
【 यह लेखमाला में आगे भी ऐसेही अनेक बहादुर सैनिकोकि गाथाए हम आपके सामने लेकर अनेक प्रयास करेंगे। आशा है आप ऐसे पसंद करेंगे। 】
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