पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल। पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया। सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख और पिता से देश प्रेम की कहानियां सुनने पर विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा। स्कूल में विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था। जमा दो तक की पढ़ाई करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। उन्होंने सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस (सम्मिलित रक्षा सेवा) की भी तैयारी शुरू कर दी। हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन देश सेवा का सपना लिए विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया।
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विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया।
विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा।
मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी की छाती में गोली लगी और वे “जय माता दी” कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुये।
16 जून को कैप्टन ने अपने जुड़वां भाई विशाल को द्रास सेक्टर से चिट्ठी में लिखा –“प्रिय कुशु, मां और पिताजी का ख्याल रखना ... यहाँ कुछ भी हो सकता है।”
कैप्टन के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी ने विक्रम को शेरशाह उपनाम से नवाजा था।
परमवीर चक्र सम्मान
अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया जो उनके पिता जी.एल. बत्रा ने प्राप्त किया।
विक्रम बत्रा ने 18 वर्ष की आयु में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था। वह नेत्र बैंक के कार्ड को हमेशा अपने पास रखते थे
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7 जुलाई को कैप्टन विक्रम बत्रा की बरसी होती है. उनकी लाइफ के कुछ फैक्टस
1. शुरुआती पढ़ाई के लिए विक्रम किसी स्कूल में नहीं गए थे. उनकी शुरुआती पढ़ाई घर पर ही हुई थी और उनकी टीचर थीं उनकी मम्मी.
2. 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वांइट 5140 छीन लिया था. ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था. वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे.
3. इसे जीतते ही विकम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था.
4. परमवीर चक्र पाने वाले विक्रम बत्रा आखिरी हैं. 7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी. इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं.’
5. अक्सर अपने मिशन में सक्सेसफुल होने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा जोर से चिल्लाया करते थे, ‘ये दिल मांगे मोर.’
6. उनके साथी नवीन, जो बंकर में उनके साथ थे, बताते हैं कि अचानक एक बम उनके पैर के पास आकर फटा. नवीन बुरी तरह घायल हो गए. पर विक्रम बत्रा ने तुरंत उन्हे वहां से हटाया, जिससे नवीन की जान बच गई. पर उसके आधे घंटे बाद कैप्टन ने अपनी जान दूसरे ऑफिसर को बचाते हुए खो दी.
7. विक्रम बत्रा के बारे में बताते हुए नवीन इमोशनल हो जाते हैं. एक वाकया और सुनाते हैं कि पाकिस्तानी घुसपैठिये लड़ाई के दौरान चिल्लाए, ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो. हम नरमदिल हो जाएंगे’. इस बात पर कैप्टन विक्रम बत्रा मुस्कुराए और अपनी AK-47 से फायर करते हुए बोले, ‘लो माधुरी दीक्षित के प्यार के साथ’ और कई सैनिकों को मार गिराया.
8. कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से भारत में ही नहीं सुनाए जाते, पाकिस्तान में भी विक्रम बहुत पॉपुलर हैं. पाकिस्तानी आर्मी भी उन्हें शेरशाह कहा करती थी.
9. विक्रम बत्रा की 13 JAK रायफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर जॉइनिंग हुई थी. दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए. उसी वक्त कारगिल वॉर शुरू हो गया. 7 जुलाई, 1999 को 4875 प्वांइट पर उन्होंने अपनी जान गंवा दी, पर जब तक जिंदा रहे, तब तक अपने साथी सैनिकों की जान बचाते रहे.
10. उनके दोस्त नवीन कहते हैं कि कैप्टन अपनी सेफ्टी को पीछे रखते थे, इसीलिए ‘मुझे बंकर से खींचकर पहले उन्होंने मेरी जान बचाई.’
11. विक्रम को प्यार था डिंपल चीमा से. पंजाब यूनिवर्सिटी में दोनों की मुलाकात हुई थी. डिंपल कहती हैं कि उन्होंने और विक्रम ने कुछ खूबसूरत महीने चंडीगढ़ में गुजारे.
12. डिंपल उस वक्त को याद करते हुए कहती हैं, ‘1996 में विक्रम का सलेक्शन आर्मी में हो गया, तो उसने कॉलेज छोड़ दिया. एक भी दिन 17 साल में नहीं गुजरा, जब मैंने उसे याद नहीं किया हो. मुझसे दूर आर्मी में चले जाने के बाद भी हमारा प्यार बढ़ता गया. कारगिल से लौटने पर दोनों का शादी करने का प्लान था. पर वो लौटा नहीं और जिंदगी भर के लिए मुझे यादें दे गया.’
13. ‘कैप्टन विक्रम बत्रा अगर कारगिल वॉर से सही-सलामत लौट आए होते, तो 15 साल के अंदर मेरी कुर्सी पर बैठे होते.’ ये बात उस वक्त के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ वेद प्रकाश मलिक ने कही थी.
14. 2003 में कारगिल पर बनी फिल्म LOC कारगिल में कैप्टन विक्रम बत्रा का रोल अभिषेक बच्चन ने किया था. उनको अपने जोश और इंस्पायर करने वाले जुमलों के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
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कारगिल विजय के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की जाबांजी के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे. हम सभी देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले उस हीरो की जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं को जानना चाहते हैं. हम कैप्टन बत्रा की जिंदगी के उन खूबसूरत लम्हों से अबतक अनजान हैं, जिनके सहारे उनकी हमसफर अपना जीवन बिता रही है. कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन बत्रा की लव स्टोरी भी उतनी ही खूबसूरत है जितना की उनकी बहादुरी के किस्से.
साल 1995 में डिंपल पहली बार विक्रम बत्रा से पंजाब यूनिवर्सिटी में मिली थीं. ये इस खूबसूरत प्रेम कहानी की शुरुआत थी. डिंपल बताती हैं कि विक्रम के साथ शुरुआती समय उन्होंने चंडीगढ़ में बिताया. साल 1996 में विक्रम का चयन इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून में हो गया था.
पंजाब यूनिवर्सिटी में शुरू हुई ये खूबसूरत लव स्टोरी विक्रम के देहरादून जाने के बाद और भी मजबूत हो गई.
बीते 17 सालों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा, जब मैंने खुद को तुमसे अलग पाया हो. मुझे हमेशा लगता है जैसे तुम किसी पोस्टिंग पर मुझसे दूर गए हो. - डिंपल चीमा
डिंपल बताती हैं, ‘जब मेरे परिवारवाले मेरे लिए कोई रिश्ता लेकर आते...और मैं विक्रम को बताती तो वो बड़ा खूबसूरत जवाब देता था.’
विक्रम हमेशा कहता था, तुम जिसे प्यार करती हो, उसे हासिल करने की कोशिश करो...वरना लोग तुम्हें उससे प्यार करने को कहेंगे, जो तुम्हें मिलेगा. - डिंपल चीमा
इस खूबसूरत लवस्टोरी की उम्र भले ही चार साल हो लेकिन इसका अहसास अमर हो गया है. विक्रम कारगिल से लौटने के बाद डिंपल से शादी करना चाहते थे. लेकिन विक्रम जब कारगिल से लौटे तो तिरंगे में लिपटकर.
मुझे गर्व होता है, जब लोग तुम्हारी उपलब्धियों पर बात करते हैं. पर दिल के किसी कोने में एक रंज जरूर है कि काश तुम कहीं अपनी बहादुरी की ये कहानियां सुन रहे होते...तो अच्छा होता. - डिंपल चीमा
लेकिन फिर भी विक्रम के जाने के बाद भी यह लव स्टोरी खत्म नहीं हुई. डिंपल, कैप्टन बत्रा की खूबसूरत यादों के सहारे अपनी जिंदगी बिता रहीं हैं.
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संपादक की डेस्क से
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