हर सुबह उठ, मुल्क के अख़बार भी देखा करो ।
कब, कहाँ, क्या कर रही सरकार भी देखा करो ।
बर्फ़ शिमले में गिरी हर साल तुम हो देखते,
शीत लहरों में मरे लाचार भी देखा करो ।
शीत लहरों में मरे लाचार भी देखा करो ।
जब किसी अपने को जाओ, देखने तुम अस्पताल,
बिन दवा के मर रहे बीमार भी देखा करो ।
बिन दवा के मर रहे बीमार भी देखा करो ।
आज मुझसे सख़्त लहज़े में ये पत्नी ने कहा,
छोड़ दो आवारगी घर-द्वार भी देखा करो ।
छोड़ दो आवारगी घर-द्वार भी देखा करो ।
- बल्ली सिंह चीमा
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