जम्मू कश्मीर में पुलिसकर्मी दोधारी तलवार पर चलते हैं. एक तरह जहां उन्हें हशियारबंद आंदोलन, प्रदर्शनकारियों का सामाना करते हैं वहीं दूसरी तरफ कानून व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं की होती है. बीते कई महीनों से जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान चरमपंथियों के निशाने पर हैं. कश्मीर में तैनात जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी ये मानते हैं कि उनके सामने एक नहीं, कई चुनौतियां हैं. जम्मू-कश्मीर पुलिस चरमपंथ-रोधी ऑपरेशन में भी हिस्सा लेती है और पत्थरबाज़ों के साथ भी आमने-सामने होती है. लेकिन सेना और दूसरे सुरक्षाबलों की तरह इनका काम ज़रा अलग है. जम्मू-कश्मीर पुलिस में जो लोग काम करते हैं वो इसी राज्य के निवासी हैं. आम लोग इन्हें भी सेना और सुरक्षाबलों की नज़र से देखते हैं. एक पुलिस अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताया, "मैं एक ग्रामीण इलाके का रहने वाला हूं, मेरी ड्यूटी श्रीनगर में है. मैं अपने घर तक नहीं जा पाता हूँ. वहां चरमपंथियों का बहुत दबदबा है. मैं अगर वहां गया, तो ये सरासर आत्महत्या है. इसीलिए मैं घर जाता ही नहीं हूं." जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल मुनीर खान ने बीबीसी के साथ एक ख़ास बातचीत में बताया कि जब उनके अधिकारियों को मारा जाता है तो पुलिस को भी धक्का लगता है. उन्होंने बताया, "ये सच है कि जब चरमपंथी हमलों में हमारे लोग मारे जाते हैं तो बड़ा धक्का लगता है. अभी हाल ही में हमारे एक अधिकारी चरमपंथी हमले में मारे गए हैं और दूसरे अधिकारी को पीट-पीट कर मार दिया गया."
पुलिस के सामने चुनौतियों पर बात करते हुए कहते वो हैं, "हमारे पास न सिर्फ क़ानून व्यवस्था को ठीक करने का मसला है, बल्कि चरमपंथ की शह पर जो लोग काम करते हैं, वह भी एक बड़ी चुनौती है. ये एक नया मामला कुछ महीनों से ही शुरू हुआ है. चरमपंथी लोगों को इस्तेमाल करके उनसे क़ानून व्यवस्था के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं." वह आगे बताते हैं, "जो पुलिस के लोग चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन में काम करेंगे, उन अधिकारियों और जवानों को मार दिया जाएगा. चरमपंथी तो सॉफ्ट टारगेट ढूंढ़ते हैं, वो तो नुकसान पहुंचाएंगे. ये बात है कि यहां कुछ लोग हमें चरमपंथ के ख़िलाफ़ काम करते हुए देखना नहीं चाहते हैं. लेकिन हम अपनी ज़िम्मेदारियों को इस वजह से छोड़ नहीं सकते हैं. ये हमारी नौकरी का हिस्सा है."
एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि पुलिस इस समाज में चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन की वजह से अलग-थलग हो गई है. उन्होंने कहा, "अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस को चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन से अलग किया जाएगा तो लोगों का जो गुस्सा हमारे ख़िलाफ़ है वह ख़त्म हो सकता है.""अभी लोग हमें अपना दुश्मन समझ रहे हैं. जबकि हम तो अपनी ड्यूटी निभाते हैं." वो कहते हैं, "मैं आपको एक दोस्त, जो पुलिस अधिकारी हैं उनकी मिसाल देता हूं. पुलिस अधिकारी बनने से पहले उनकी मंगनी हो गई थी और सब कुछ सही चल रहा था. जब मेरे दोस्त ने पुलिस अधिकारी की परीक्षा पास की और वह अधिकारी बन गया, तो लड़की के पिता ने रिश्ता ही तोड़ दिया. इससे आप अंदाज़ा लगा सकता हैं कि पुलिस को कश्मीर में आम लोग किस नज़र से देखते हैं."
पुलिस अधिकारी मानते हैं कि राजनैतिक हालात भी उनके लिए मुश्किलें पैदा करता है. एक अधिकारी का कहना है, "जब भी कश्मीर में कोई अनहोनी होती है तो हम उसको ठीक करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हमारे सियासी नेता एक बयान से वह सब कुछ खत्म कर देते हैं, जो हमने किया होता है. ये भी एक बड़ी समस्या है. वह तो हमारे कंधों पर रखकर बंदूक चलाते हैं. निशाने पर तो हम हैं." बातचीत में वह बताते हैं कि एक और चुनौती हमारे लिए ये है कि पुलिस के लिए कोई अलग कॉलोनी नहीं है. उन्होंने कहा, "हम जिनके ख़िलाफ़ दिनभर जंग करते हैं, शाम को हमें उन्हीं लोगों के साथ रहना पड़ता है. हमारी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. आप जम्मू जाएं तो वहां पुलिस वालों के लिए लोगों का साथ होता है, जबकि कश्मीर में ऐसा नहीं है.
एक और पुलिस अधिकारी बताते हैं कि कोई कश्मीर में अगर मुझ से ये पूछेगा कि आप क्या काम करते हैं, तो मैं हरगिज़ ये नहीं कहूंगा कि मैं पुलिस अधिकारी हूं. वो कहते हैं, "बीते साल जब कश्मीर में महीनों तक भारत विरोधी प्रदर्शन हुए थे तो उस बीच एक पुलिसकर्मी ने मुझे कहा था कि मैं जब घर जा रहा था तो रास्ते में मुझे प्रदर्शनकारियों ने पकड़ा और मेरा पहचान पत्र मांगा, जो उस वक्त मैंने साथ नहीं रखा था. उन्होंने ये कहा था कि अगर उनको पता चलता कि मैं पुलिस वाला हूं तो मुझे जान से मार देते."
कश्मीर में एक साथ कई चरमपंथी हमले
कुछ महीने पहले दक्षिणी कश्मीर में पुलिस के कई अधिकारियों के घरों में चरमपंथी घुसे थे और उनके परिजनों को धमकाया था, जिसका पुलिस ने सख़्त नोटिस लिया था.कश्मीर में बीते चार महीनों के भीतर 16 पुलिसकर्मी चरमपंथी हमलों में मारे गए हैं.जम्मू- कश्मीर पुलिस की कुल तादाद एक लाख 20 हज़ार है. चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक अलग शाखा है जिसको स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप कहा जाता है.
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संपादक की डेस्क से
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