समुद्र तल से 16404 फुट ऊंचे चुशूल क्षेत्र के रेजांगला की बर्फीली पहाडिय़ों पर आसमान के नीचे, सिर पर बिना किसी छत और काम चलाऊ गर्म कपड़े और जूते पहने सर्द हवाओं व गिरती बर्फ के बीच हाथों में हथियार लिए ठिठुरते हुए भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजीमेंट की सी कम्पनी के 120 जवान अपने सेनानायक मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में भारत माता की रक्षा में तैनात थे। एक और खुली और ऊंची पहाड़ी पर चलने वाली तेज बर्फीली हवाएं जरुरत से कम कपड़ों को भेदते हुए जवानों के शरीर में घुस पूरा शरीर ठंडा करने की कोशिशों में जुटी थी, वहीं भारत माता को चीनी दुश्मन से बचाने की भावना उस कड़कड़ाती ठंड में उनके दिल में शोले भड़काकर उन्हें गर्म रखने में कामयाब हो रही थी। यह देशभक्ति की वो उंची भावना थी जो इन कड़ाके की बर्फीली सर्दी में भी जवानों को सजग और सतर्क बनाए हुए थी। 18 नवंबर को 1962 को सुबह 4.35 बजे अचानक चीनी सैनिकों ने हमला बोल दिया।
आपको बता दें कि गीतकार प्रदीप द्वारा लिखा गया देशप्रेम से ओतप्रोत गीत जिसे लता मंगेशकर ने गाकर अमर कर दिया था दरअसल वो रेजांगला युद्ध और मेजर शैतान सिंह को ध्यान में ही रखकर रचा गया था। गीत के बोल कुछ यूं हैं, ....थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक एक ने मारा, फिर गिर गये होश गंवा के, जब अंत समय आया तो कह गए के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं, क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वे अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी...
अभी दिन उगा भी नहीं था और रात के धुंधले और गिरती बर्फ में जवानों ने देखा कि कई सारी रोशनी उनकी और बढ़ रही है चूंकि उस वक्त देश का दुश्मन चीन दोस्ती की आड़ में पीठ पर छुरा घोंप कर युद्ध की शुरुआत कर चुका था, इसलिए जवानों ने अपनी बंदूकों की नाल उनकी तरफ आती रोशनियों की ओर खोल दी। पर थोड़ी ही देर में मेजर शैतान सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उनके सैनिक जिन्हें दुश्मन समझ मार रहे हंै वे चीनी सैनिक नहीं बल्कि गले में लालटेन लटकाए उनकी ओर बढ़ रहे याक हैं। उनके सैनिक चीनी सैनिकों के भरोसे उन्हें मारकर अपना गोला-बारूद फालतू ही खत्म कर रहे है।
दरअसल चीनी सेना के पास खुफिया जानकारी थी कि रेजांगला पर उपस्थित भारतीय सैनिक टुकड़ी में सिर्फ 120 जवान है और उनके पास 300-400 राउंड गोलियां और महज 1000 हथगोले हैं। इसलिए अंधेरे और खराब मौसम का फायदा उठाते हुए चीनी सेना ने याक जानवरों के गले में लालटेन बांध उनकी और भेज दिया ताकि भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो जाए। जब भारतीय जवानों ने याक पर फायरिंग बंद कर दी तब चीन ने अपने 2000 सैनिकों को रणनीति के तहत कई चरणों में हमले के लिए भेजा।
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मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर स्थिति की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देते हए समय पर सहायता मांगी पर उच्चाधिकारियों से जबाब मिला कि वे सहायता पहुंचाने में असमर्थ हैं । उन्होंने कहा कि आपकी टुकड़ी के थोड़े से सैनिक चीनियों की बड़ी सेना को रोकने में असमर्थ रहेंगे इसलिए आप चौकी छोड़ पीछे हट जाएं और अपने साथी सैनिकों की जान बचाएं। उच्चाधिकारियों का आदेश सुनते ही मेजर शैतान सिंह ने सोचा कि भारत पर हमला हो रहा है और उसका मुकाबला करने के लिए मेजर शैतान सिंह को मौका मिला है तो वह बिना मुकाबला किए पीछे हट अपने देश और अपनी बटालियन को शर्मसार नहीं कर सकते हैं।
उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाकर कहा कि मुझे पता है हमने चीनियों का मुकाबला किया तो हमारे पास गोला बारूद कम पड़ जाएगा और पीछे से भी हमें कोई सहायता नहीं मिल सकती, ऐसे में हमें हर हाल में शहादत देनी पड़ेगी और हम में से कोई नहीं बचेगा। उच्चाधिकारियों का पीछे हटने का आदेश है इसलिए आप में से जिस किसी को भी अपने प्राण बचाने है वह पीछे हटने को स्वतंत्र है। लेकिन मैं चीनी सेना का मरते दम तक मुकाबला करूंगा।
अपने सेनानायक के दृढ निर्णय के बारे में जानकार उनकी टुकड़ी के हर सैनिक ने निश्चय कर लिया कि उनके शरीर में प्राण रहने तक वे मातृभूमि के लिए लड़ेंगे चाहे पीछे से उन्हें सहायता मिले या ना मिले। गोलियों की कमी पूरी करने के लिए निर्णय लिया गया कि एक भी गोली दुश्मन को मारे बिना खाली ना जाए और दुश्मन के मरने के बाद उसके हथियार छीन कर गोला-बारूद की कमी पूरी की जाए। यही रणनीति अपना कर भारत के 120 बहादुर जवान 2000 चीनी सैनिकों से भीड़ गए।
चीनी सेना की तोपों व मोर्टारों के भयंकर आक्रमण के बावजूद हर सैनिक अपने प्राणों की आखिरी सांस तक एक एक सैनिक दस-दस, बीस-बीस दुश्मनों को मार कर शहीद होता रहा और आखिर में मेजर शैतान सिंह के साथ कुछ और सैनिक बुरी तरह घायल बचे। बुरी तरह घायल हुए अपने मेजर को दो सैनिकों ने किसी तरह उठाकर एक बर्फीली चट्टान की आड़ में पहुंचाया और चिकित्सा के लिए नीचे चलने का आग्रह किया, ताकि अपने नायक को बचा सकें, लेकिन रणबांकुरे मेजर शैतान सिंह ने इंकार कर दिया।
अपने दोनों सैनिकों से कहा कि उन्हें चट्टान के सहारे बिठाकर लाईट मशीनगन दुश्मन की और तैनात कर दें और गन की ट्रिगर को रस्सी के सहारे उनके एक पैर से बांध दें जिससे वे एक पैर से गन को घुमाकर निशाना लगा सकें और दूसरे घायल पैर से रस्सी के सहारे फायर कर सकें। मेजर के दोनों हाथ हमले में बुरी तरह से जख्मी हो गए थे और उनके पेट में गोलियां लगने से खून बह रहा था जिस पर कपड़ा बांध मेजर ने पोजीशन ली व दोनों जवानों को उच्चाधिकारियों को सूचना देने को बाध्य कर भेज दिया।
सैनिकों को भेज बुरी तरह से जख्मी मेजर चीनी सैनिकों से कब तक लड़ते रहे, कितनी देर लड़ते रहे और कब उनके प्राण शरीर छोड़ स्वर्ग को प्रस्थान कर गए किसी को नहीं पता। हां युद्ध के तीन महीनों बाद उनके परिजनों के आग्रह और बर्फ पिघलने के बाद सेना के जवान रेडक्रास सोसायटी के साथ उनके शव की तलाश में जुटे। एक गडरियों की सूचना पर जब वो लोग उस चट्टान के पास पहुंचे तब भी मेजर शैतान सिंह की लाश अपनी एलएमजी गन के साथ पोजीशन लिए वैसे ही मिली जैसे मरने के बाद भी वे दुश्मन के दांत खट्टे करने को तैनात है।
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मेजर के शव के साथ ही उनकी टुकड़ी के शहीद हुए 114 सैनिकों के शव भी अपने अपने हाथों में बंदूक व हथगोले लिए पड़े थे, लग रहा था जैसे अब भी वे उठकर दुश्मन से लोहा लेने को तैयार है। इस युद्ध में मेजर द्वारा भेजे गए दोनों संदेशवाहकों द्वारा बताई गई इस घटना पर सरकार ने तब भरोसा किया और शव खोजने को तैयार हुई जब चीनी सेना ने अपनी एक विज्ञप्ति में कबूल किया कि उसे सबसे ज्यादा जनहानि रेजांगला दर्रे पर हुई। मेजर शैतान सिंह की 120 सैनिकों वाली छोटी सी सैन्य टुकड़ी को मौत के घाट उतारने हेतु चीनी सेना को अपने 2000 सैनिकों में से 1800 सैनिकों की बलि देनी पड़ी।
कहा जाता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और बलिदान को देख चीनी सैनिकों ने जाते समय सम्मान के रूप में जमीन पर अपनी राइफलें उल्टी गाडने के बाद उन पर अपनी टोपियां रख दी थी। इस तरह भारतीय सैनिकों को शत्रु सैनिकों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ था। शवों की बरामदगी के बाद उनका यथास्थान पर सैन्य सम्मान के साथ दाहसंस्कार कर मेजर शैतान सिंह भाटी को अपने इस अदम्य साहस और अप्रत्याशित वीरता के लिए भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
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संपादक की डेस्क से
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