एक नौजवान भारतीय अर्दली को 1887 में महारानी विक्टोरिया के शासन के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान उनके दरबार में सेवा करने के लिए इंग्लैंड लाया गया.
‘लंबे और गंभीर’ अब्दुल करीम में कुछ ऐसा था जिसे महारानी की आंखों ने पकड़ लिया. तब वह 26 साल का था और महारानी अपनी उम्र के छठे दशक के आखिर में थीं. जब उसे महारानी के सामने पेश किया गया तो उसने उनके पैरों को चूम लिया. कुछ दिन बाद उसने शानदार भारतीय व्यंजन तैयार कर महारानी को आश्चर्यचकित कर दिया.
करीम जल्द ही महारानी का पसंदीदा बन गया. उसे खाने की मेज पर प्रतीक्षा करने के काम से हटाकर ‘मुंशी’ बना दिया गया. उसने रानी को हिंदुस्तानी सिखाया, भारत से जुड़े मामलों पर उनके साथ अपनी राय साझा की और महारानी का सबसे करीबी भरोसेमंद बन गया.
दोनों के बीच की यह दोस्ती महारानी विक्टोरिया के दरबारियों और उनके बच्चों को नागवार गुजरती थी. 1901 में उनके निधन के बाद उनके बेटे किंग एडवर्ड VII ने महारानी और उनके मुंशी के बीच पत्राचार की सभी निशानियों को नष्ट कर दिया. साथ ही अब्दुल करीम को भारत वापस भेज दिया.
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