वटपौर्णिमा के दिन कई महिलाओं जो वटवृक्ष की एक दिन की पूजा भी घर मे करती है।कर्नाटक राज्य में आठ हजार बच्चोंके के उस महिला पर अधिक ध्यान देता है। कर्नाटक राज्य के एक गांव हुलिकल में थिमक्का नाम की औरत रहती हैं। जो अनपढ़ है। और उम्र के साथ उसका विवाह चिकय्या नाम के व्यक्ति के हो गया । शादी के बाद दोनों पतिपत्नी खेतोंमें काम करकर गुजारा करते थे। शादी के कई दिनों बाद भी उन्हें कोई बच्चा नही था, इसलिए उनके रिश्तेदारोंने उन्हें काफी तकलीफ देना शुरू कर दिया ।अंत में, एक दिन वह घर से बाहर निकल गई । उनके पति के उनका साथ नही छोडा और उसके बाद दोनों एक साथ घरसे बाहर निकल गऐ। दोनों घर छोड़ने के बाद प्रकृति की रक्षा करने की शपथ ले ली।
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वे वटवृक्ष की पूजा करनेके बजाय वटवृक्ष को संरक्षित करने में जुड़ गये थे। दोनो मिलकर वटवृक्ष का बीज इकट्ठा करते और चार- चार किलोमीटर के अंतराल के बाद उन्ह बिजोको मिट्टिमे लगा देते थे, यही उनका काम बन गया। इतने दूर तक पेड़ लगाने बाद वो दोनों पेडोको के लिए पर्याप्त पानी देनेका काम भी करते थे। थिमक्कने इन पेड़ों की देखभाल अपने बच्चों की तरह की। जल्दी ही उन्होंने 384 पेड़ लगाए। उन्हें पेड़ोके आसपास कांटोंदार जाली लगाकर उन पेडोको जानवरों से बचा कर रखा।ताकी जानवर पेडोको कोई नुकसान न पोहच सके।
अबतक हुलिकल से लेकर कुरुड़ तक वटवृक्ष के पेडोकी एक लाइन बन गयी है।अब इन वटवृक्ष के पेडोको की संख्या आठ हजार है। और अब कर्नाटक सरकार भी वटवृक्षों का ख्याल रखता है। थिमक्का को अपने इस अभिनय के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर कई पुरस्कार मिल गए है ।
'दुनिया के सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूचीमें थिमक्का को बीबीसी ने शामिल किया है। कर्नाटक राज्य सार्वजनिक रूप से "सालूमर्दा थिमक्का" के नाम से उनकी पहचान करता है। "सालूमर्दा 'का मतलब है वृक्षो की लबी लाइन।
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