Thursday, June 29, 2017

Company Quartermaster Havildar Abdul Hamid

        1965 के युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी आरसीएल जीप से पाकिस्तान के अमेरिका से लिए हुए पैटन टैंकों को उड़ाकर दुनिया को हैरत में डाल दिया था।  इन्हें शहादत कैसे मिली बता रहे हैं उस युद्ध में हमीद के साथी और आरसीएल जीप के ड्राइवर रहे मोहम्मद नसीम...

10 सितंबर तक हमीद पाकिस्तान के 7 पैटन टैंक नेस्तनाबूद कर चुके थे। पाकिस्तान से हम असल उत्तर के मैदान में भिड़ रहे थे। वह हमें कुचल कर आगे निकलने की कोशिश में था। दरअसल उसका इरादा अमृतसर पर कब्जे का था, लेकिन तीन दिन से हम उसे रोके हुए थे और आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे। मैं उस आरसीएल जीप का ड्राइवर था। 10 सितंबर की सुबह 7 बजे ही  आमने-सामने फायरिंग शुरू हो गई। पर हमें समझ नहीं आ रहा था कि फायर कहां से आ रहा है।
हमीद मुझे बोले कि नसीम, मुझे लग रहा है कि दुश्मन को हमारी पोजिशन का पता चल गया है। तुम तैयार रहना, हमें पोजिशन बदलनी होगी। हम तैयारी में जुट गए। कुछ ही देर बाद हमारी जीप पर टैंक का ट्रेसर राउंड आकर लगा। मैंने हमीद को कहा-जीप से उतर जाओ, दुश्मन को हमारी पोज़िशन का पता चल गया है। वह कभी भी गोला दाग सकता है। इतने मे बाकि साथी जीप से उतर गए, लेकिन हमीद नहीं उतरे वह गन को लोड करने में लग गए। मैंने हमीद को कंधे से खींचा और कहा जिद मत करो उतर जाओ। पर हमीद नहीं माने।

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मैंने हमीद को धक्का भी दिया और जैसे ही जीप से उतरा पैटन टैंक का गोला जीप को बाईं तरफ़ से चीरते हुए दाईं तरफ से बाहर निकल गया। तब तक मैं हमीद को पुकारते हुए खेत से गुजरती पानी की नाली में लेट चुका था। मैंने सर जमीन से लगा रखा था। कुछ देर बाद जैसे ही मैंने गर्दन उठाकर देखा, हमीद कहीं नजर नहीं आया। गोला हमीद के छाती पर लगा और दाएं कंधे को साथ ले उड़ा था। मैं रेंगते हुए जीप की पिछली तरफ गया तो देखा कि आधा धड़ जमीन पर पड़ा जल रहा था। वहीं, पर खून बिखरा हुआ है। कुछ दूर उसका कटा हुआ हाथ पड़ा था और एक टांग दूसरे खेत में पड़ी थी।
खेत में आग भी लग गई थी। जैसे-तैसे मैंने हमीद के जल रहे आधे शरीर की आग को कपड़ों से बुझाया। हाथ उठाने गया तो देखा उस पर बंधी घड़ी चल रही है और सुबह के साढ़े दस बजे हैं। मैंने वो घड़ी हाथ से निकाल ली और हमीद से शरीर के टुकड़ों को समेटने में लग गया। इतने में हमारे सीनियर अफसर वहां आए और पूछा हमीद कहां है? मैंने उसके शरीर के टुकड़ों की तरफ इशारा किया और चुप हो गया। ऑफिसर कहने लगे इन्हें जल्दी से ढक दो। उसके बाद मैंने सबको समेटकर वहीं दफ़न करते हुए लड़खड़ाती ज़बान से फ़ातिहा पढ़ दिया और हमीद को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

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गांव चीमा में अब्दुल हमीद की समाधि बनी हुई है। यही वह जगह है जहां उनके शरीर के टुकड़ों को समेटकर नसीम ने दफ़न किया था। क़ाबिले ज़िक्र है कि अब्दुल हमीद की जीप पर गिरा पैटन टैंक का गोला उनके दाएं कंधे समेत आधे शरीर को ले उड़ा था। असल उत्तर व चीमां गांव के निवासी अब्दुल हमीद की समाधि पर हर साल मेला लगाते हैं। उनका कहना है कि वीर अब्दुल हमीद की वजह से वह जिंदा है। गांवों के लोग खुद के खर्च से ही यह मेला लगाते हैं।

आगे पढ़ें 1965 के वीर की कहानी उनकी पत्नी की जुबानी
यह सुनकर ससुर जी बोले, रो मत ‘हमार बिटवा पीठ दिखाए के नहीं भागे। ऐसन काम करके शहीद हुए हैं कि दुनिया सैकड़न बरस याद रखे।’ गांव के लोग भी हमें कहने लगे कि हमीद बहुत बड़ा काम कर गए हैं। उस दिन के बाद से हम नहीं रोए क्योंकि हमार शौहर पीठ दिखाए के नहीं भागे थे। वीर अब्दुल हमीद के साथ-साथ हमें भी लोग वीर नारी बुलाने लगे। हमारी शादी 1951 में हुई थी, जब वे शहीद हुए तब हमारे पांच बच्चे थे, 4 बेटे एक बेटी। ...और आज 13 पोते और 10 पोतियों की दादी हूं। हर साल हम अपने गांव गाजीपुर में उनकी शहादत को नमन करते हैं। सेना के लोग भी आते हैं। आज भी हमने गाजीपुर में बहुत बड़ा कार्यक्रम रखा है, देशभर से लोग आ रहे हैं। उन्हें सलामी दी जाएगी। लोग जन्म लेते हैं और बिना कुछ किए ही मर जाते हैं, लेकिन मेरे शौहर ऐसा कुछ कर गए हैं उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
हमार शौहर पीठ दिखाए के नहीं भागे...

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संपादक की डेस्क से

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