रणबांकुरों की धरती शेखावाटी का झुंझुंनू जिला राजस्थान में ही नहीं अपितु पूरे देश में शरवीरों, बहादुरों के क्षेत्र में अपना विशिष्ठ स्थान रखता है। पूरे देश में सर्वाधिक सैनिक देने वाले इस जिले की मिट्टी के कण-कण में वीरता टपकाती है। देश के खातिर स्वयं को उत्सर्ग कर देने की परम्परा यहां सदियों पुरानी है। मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते मिट जाना यहां गर्व की बात है। 1947-48 में पाक समर्थित कबालियों से युद्ध में हवलदार मेजर पीरूसिंह ने देश हित में स्वयं को कुर्बान कर देश की आजादी की रक्षा की।
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राजस्थान में झुंझुंनू जिले के बेरी नामक छोटे से गांव में 20 मई 1918 में ठाकुर लालसिंह के घर जन्मे पीरूसिंह चार भाइयों में सबसे छोटे थे तथा राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी में हवलदार मेजर थे। 1947 के भारत-पाक विभाजन के बाद जब कश्मीर पर कबालियों ने हमला कर हमारी भूमि का कुछ हिस्सा दबा लिया तो कश्मीर नरेश ने अपनी रियासत के भारत में विलय की घोषणा कर दी। इस पर भारत सरकर ने अपनी भूमि की रक्षार्थ वहां फौजें भेजीं। इसी सिलसिले में राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी को भी टिथवाला के दक्षिण में तैनात किया गया था। 5 नवम्बर 1947 को भयंकर सर्दी के मौसम में बटालियन हवाई जहाज से वहां पहुंची। श्रीनगर की रक्षा करने के बाद उरी सेक्टर से पाक कबायली हमलावरों को परे खदेड़ने में इस बटालियन ने बड़ा साहसी कार्य किया था।
मई 1948 में छठी राजपूत बटालियन ने उरी और टिथवाल क्षेत्र में झेलम नदी के दक्षिण में पीरखण्डी और लेडीगली जैसी प्रमुख पहाड़ियों पर कब्जा करने में विशेष योगदान दिया। इन सभी कार्यवाहियों के दौरान पीरूसिंह ने अद्भुत नेतृत्त्व और साहस का परिचय दिया। जुलाई 1948 के दूसरे सप्ताह में जब दुश्मन का दबाव टिथवाल क्षेत्र में बढ़ने लगा तो छठी बटालियन को उरी क्षेत्र से टिथवाल क्षेत्र में भेजा गया। टिथवाल क्षेत्र की सुरक्षा का मुख्य केन्द्र दक्षिण में 9 किलोमीटर पर रिछमार गली था जहां की सुरक्षा को निरन्तर खतरा बढ़ता जा रहा था।
अत: टिथवाल पहुंचते ही राजपूताना राइफल्स को दारापाड़ी पहाड़ी की बन्नेवाल दारारिज पर से दुश्मन को हटाने का आदेश दिया गया था। यह स्थान पूर्णत: सुरक्षित था और ऊंची-ऊंची चट्टानों के कारण यहां तक पहुंचना कठिन था। जगह तंग होने से काफी कम संख्या में जवानों को यह कार्य सौंपा गया। 18 जुलाई को छठी राइफल्स ने सुबह हमला किया जिसका नेतृत्त्व हवलदार मेजर पीरूसिंह कर रहे थे। पीरूसिंह की प्लाटून जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उस पर दुश्मन की दोनों तरफ से लगातार गोलियां बरस रही थीं। अपनी प्लाटून के आधे से अधिक साथियों के मारे जाने पर भी पीरूसिंह ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार अपने साथियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे एवं स्वयं अपने प्राणों की परवाह न कर आगे बढ़ते रहे तथा अन्त में उस स्थान पर पहुंच गये जहां मशीन गन से गोले बरसाये जा रहे थे।
उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सभी सैनिकों को भून दिया जिससे दुश्मन के गोले बरसने बन्द हो गये। जब पीरूसिंह को यह अहसास हुआ कि उनके सभी साथी मारे गये तो वे अकेले ही आगे बढ़ चले। रक्त से लहू-लुहान पीरूसिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे। इतने में दुश्मन की एक गोली आकर उनके माथे पर लगी और गिरते-गिरते भी उन्होंने दुश्मन की दो खंदकें नष्ट कर दीं। अपनी जान पर खेलकर पीरूसिंह ने जिस अपूर्व वीरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय दिया वह भारतीय सेना के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। देश हित में पीरूसिंह ने अपनी विलक्षण वीरता का प्रदर्शन करते हुये अपने अन्य साथियों के समक्ष अपनी वीरता, दृढ़ता व मजबूती का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस कारनामे को विश्व के अब तक के सबसे साहसिक कारनामों में से एक माना जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने उस समय उनकी माता श्रीमती तारावती को लिखे पत्र में लिखा था कि देश कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का मातृभूमि की सेवा में किए गए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ है।
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पीरूसिंह को इस वीरता पूर्ण कार्य पर भारत सरकार ने मरणोपरान्त ’’परमवीर चक्र’’ प्रदान कर उनकी बहादुर का सम्मान किया। अविवाहित पीरूसिंह की ओर से यह सम्मान उनकी मां ने राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों ग्रहण किया। परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले हवलदार मेजर पीरूसिंह राजस्थान के पहले व भारत के दूसरे बहादुर सैनिक थे। पीरूसिंह के जीवन से प्रेरणा लेकर राजस्थान का हर बहादुर फौजी के दिल में हरदम यही तमन्ना रहती है कि मातृभूमि के लिए शहीद हो जाये।
Citation
Company Havildar Major Piru Singh
(No. 2831592)
6 Rajputana Rifles
South of Tithwal, D Company, of which No. 2831592 Piru Singh was Havildar Major, was detailed to attack and capture an enemy occupied hill feature. The enemy had well dug in positions and had sited his MMGs so as to cover all possible approaches. As the attack advanced, it was met by heavy MMG fire from both flanks. Volleys of grenades were hurled down from enemy bunkers. CHM Piru Singh was then with the forward most Section of the Company.Seeing more than half of the Section killed or wounded, he did not lose courage. With battle cries, he encouraged the remaining men and rushed forward with great determination onto the nearest enemy MMG position. Grenade splinters ripping his clothes and wounding him at several places, he continued to advance without the least regard to his safety. He was on top of the MMG position wounding the gun crew with sten gun fire. With complete disregard to his bleeding wounds, he made a mad jump on the MMG crew bayoneting them to death, thus silencing the gun.By then he suddenly realised that he was the sole survivor of the Section, the rest of them either dead or wounded. Another grenade thrown at him wounded him in the face. With blood dripping from his face wounds into his eyes, he crawled out of the trench, hurling grenades at the next enemy position.With a loud battle cry, he jumped on the occupants of the next trench, bayoneting two to death. This action was witnessed by the C Company Commander, who was directing fire in support of the attacking CompanyAs Havildar Major Piru Singh emerged out of the 2nd trench to charge on the 3rd enemy bunker, he was hit in the head by a bullet and was seen dropping on the edge of the enemy trench. There was an explosion in the trench, which showed that his grenade had doneits work. By then CHM Piru Singh’s wounds had proved fatal.He had paid with his life for his singularly brave act, but he had left for the rest of his comrades a unique example of single-handed bravery and determined cold courage.Gazette of India Notification
No. 8-Pres./52
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Honouring the War Hero
Pandit Nehru’s letter to Piru Singh’s mother
Prime Minister Jawaharlal Nehru, in his letter to Piru Singh’s
mother (Tarawati Kanwar) wrote “He paid with his life for his singularly brave act, but he left for the rest of his comrades a unique example of single-handed bravery and determined cold courage. The country is grateful for this sacrifice made in the service of the Motherland, and it is our prayer that this may give you some peace and solace.”
Source: Rachna Bisht Rawat, The Brave: Param Vir Chakra Stories�
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