Monday, June 26, 2017

Jay maa kali -Ayo Gorkhali Lieutenant-Colonel Dhan Singh Thapa 

एक ओर चीनी नेता हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे लगा रहे थे, तो दूसरी ओर 20 अक्तूबर, 1962 को उनकी सेना ने अचानक भारत पर हमला कर दिया. उस समय लद्दाख के चुशूल हवाई अड्डे के पास स्थित चौकी पर मेजर धनसिंह थापा के नेतृत्व में गोरखा राइफल्स के 33 जवान तैनात थे.

मेजर थापा खाई में मोर्चा लगाये दुश्मनों पर गोलियों की बौछार कर रहे थे. इस कारण शत्रु आगे नहीं बढ़ पा रहा था. चीन की तैयारी बहुत अच्छी थी, जबकि हमारी सेना के पास ढंग के शस्त्र नहीं थे. यहां तक कि जवानों के पास ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए अच्छे जूते तक नहीं थे. फिर भी मेजर थापा और उनके साथियों के हौसले बुलन्द थे.

जब मेजर थापा ने देखा कि शत्रु अब उनकी चैकी पर कब्जा करने ही वाला है, तो वे हर-हर महादेव का नारा लगाते हुए क्रुद्ध शेर की तरह अपनी मशीनगन लेकर खाई से बाहर कूद गये. पलक झपकते ही उन्होंने दर्जनों चीनियों को मौत की नींद सुला दिया, लेकिन गोलियां समाप्त होने पर चीनी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया और चौकी पर चीन का कब्जा हो गया.

चुशूल चौकी पर कब्जे का समाचार जब सेना मुख्यालय में पहुंचा, तो सबने मान लिया कि वहां तैनात मेजर थापा और शेष सब सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये होंगे. देश भर में मेजर थापा और उनके सैनिकों की वीरता के किस्से सुनाये जाने लगे. 28 अक्तूबर को जनरल पीएन थापर ने मेजर थापा की पत्नी को पत्र लिखकर उनके पति के दिवंगत होने की सूचना दी. परिवार में दुःख और शोक की लहर दौड़ गयी, पर उनके परिवार में परम्परागत रूप से सैन्यकर्म होता था, अतः सीने पर पत्थर रखकर परिवारजनों ने उनके अन्तिम संस्कार की औपचारिकताएं पूरी कर दीं.

सेना के अनुरोध पर भारत सरकार ने मेजर धनसिंह थापा को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ देने की घोषणा कर दी, लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद जब चीन ने भारत को उसके युद्धबन्दियों की सूची दी, तो उसमें मेजर थापा का भी नाम था. इस समाचार से पूरे देश में प्रसन्नता फैल गयी. उनके घर देहरादून में उनकी मां, बहन और पत्नी की खुशी की कोई सीमा न थी. इसी बीच उनकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया था.
10 मई, 1963 को भारत लौटने पर सेना मुख्यालय में उनका भव्य स्वागत किया गया. दो दिन बाद 12 मई को वे अपने घर देहरादून पहुंच गये, पर वहां उनका अन्तिम संस्कार हो चुका था और उनकी पत्नी विधवा की तरह रह रही थी. अतः गोरखों की धार्मिक परम्पराओं के अनुसार उनके कुल पुरोहित ने उनका मुण्डन कर फिर से नामकरण किया. इसके बाद उन्हें विवाह की वेदी पर खड़े होकर अग्नि के सात फेरे लेने पड़े. इस प्रकार अपनी पत्नी के साथ उनका वैवाहिक जीवन फिर से प्रारम्भ हुआ.

26 जनवरी, 1964 को गणतन्त्र दिवस पर मेजर धनसिंह थापा को राष्ट्रपति महोदय ने वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ प्रदान किया. 1980 तक सेना में सेवारत रहकर उन्होंने लेफ्टिनेण्ट कर्नल के पद से अवकाश लिया. वर्ष 1928 में शिमला में जन्मे इस महान मृत्युंजयी योद्धा का 77 वर्ष की आयु में पांच सितम्बर, 2005 को पुणे में देहान्त हुआ.

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