Friday, May 19, 2017

शायरी : भाग १४


👉 मैं तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड दूँ
तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ दिया है।

👉 वो खुद पर गरूर करते है,
तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं।
जिन्हें हम चाहते है,
वो आम हो ही नहीं सकते...।

👉 अक्सर वो कहत हैं वो बस मेरे हैं...
अक्सर क्यूं कहते हैं हैरत होती है...।

👉 मेरी किसी से कोई रंजिश नहीं
मेरी खुद से ही लडाई काफी है।

👉 जरा सा भी नही पिघलता दिल तुम्हारा,
इतना कीमती पत्थर कहाँ से खरीदा?

👉 हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
पर मैं पुराने पते पर नहीं रहता...।

👉 ना छेडं किस्सा ऐ उल्फत का, बडी लम्बी कहानी है...
मैं गैरों से नहीं हारा, किसी अपने की मेहरबानी है...

👉’रूतबा’ तो खाँमोशियों का होता है...
’अल्फाज’ का क्या? वो तो...
बदल जाते हैं, अक्सर ’हालात’ देखकर...!

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From Editor's desk

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