यह घटना सन् 1907 के आस-पास की है। अमरावती के पास ऋषमोचन नामक गांव में एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ था। मेले में हजारों लोग आए हुए थे। इस वजह से वहां सफाई का नामोनिशान न था। सभी लोग यह सोच रहे थे कि मेले में इतने लोग हैं और सफाई कोई अकेले उन्हीं की जिम्मेदारी नहीं है। वे भोजन की जूठी पत्तलों, दोनों और मिट्टी के बर्तनों को जहां-तहां फेंके जा रहे थे। गंदगी बढ़ती जा रही थी और किसी का इस ओर ध्यान नहीं था। वहां एक युवा संत गाडगे महाराज भी उपस्थित थे। वह चारों ओर गंदगी देखकर अकेले ही झाड़ू लेकर सार्वजनिक स्थल पर सफाई करने में जुट गए। यह देखकर दर्शनार्थियों के मन में कौतूहल के साथ-साथ उनके प्रति आदर भाव जागृत हुआ और वहां भीड़ लग गई।
भीड़ को एकत्रित देखकर गाडगे महाराज बोले, 'आप मुझे इस तरह हैरत से क्यों देख रहे हैं? मैं कोई अजूबा नहीं हूं, न ही मैं कोई अनोखा काम कर रहा हूं। फर्क इतना है कि जिस सफाई को आप केवल अपने घरों तक सीमित रखना चाहते हैं, उसी सफाई को मैं पूरे देश में फैलाना चाहता हूं। गंदगी के कारण ही महामारी और असंख्य बीमारियां पनपती हैं। इसमें हम सभी का हाथ होता है और बीमारी की चपेट में आने वाले भी हम ही होते हैं। लेकिन हम जागते तभी हैं जब इसकी चपेट में आते हैं। मुझमें और आप में इतना अंतर जरूर है कि मैं पहले ही जागरूक हो गया हूं और यहां सफाई कर रहा हूं।' गाडगे महाराज की बातें सुनकर वहां मौजूद दर्शनार्थियों की नजरें झुक गईं। इसके बाद सभी श्रद्धालु झाड़ू लिए सफाई में जुट गए।
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