ख्वाबों के पीछे
जिन्दगी उलझा ली अपनी
की हकीकत में रहने
का सलीका भी भूल
गए हम..।
तेरा शाम को हंस कर मिलना...
मेरे दिन भर की उजरत होती है।
कैसे करूँ शुक्रिया तेरी मेहरबानी का
मेरे खुदा...
मुझे माँगने का सलीका नहीं है,
पर तू देने की हर अदा जानता है।
अकेले करना पडता है,
सफर जहां में कामयाबी के लिए,
काफिला और दोस्त
अक्सर कामयाबी के बाद ही बनते हैं।
कमजोरियाँ मत खोज मुझमें...
मेरे दोस्त,
एक तू भी शामिल हैं...
मेरी कमजोरियों में।
इस सफर में नींद ऐसी खो गयी
हम ना सोये, रात थक कर सो गयी...
मुसीबतों से निखरती है शख्सियत यारों...
जो चट्टानों से न उलझे,
वो झरना किस काम का...।
एक बार तो यूँ होगा
थोडा सा सुकूँ होगा...
न दिल में कसक होगी
न सर में जुनूँ होगा...।
चलो आज फिर दिखावा करते हैं
तुम पूछो कैसे हो?
मैं कहूँ ’सब ठीक’
सुकून मिलता हैं,
दो लफ्ज कागज पर उतार कर..
चीख भी लेता हूँ
और आवाज भी नहीं होती।
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From Editor's desk
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