Tuesday, April 11, 2017

शायरी


कुछ ख्वाहिशें बारिश की
उन बूँदो की तरह होती हैं,
जिन्हें पाने की चाहत में
हथेलियाँ तो भीग जाती हैं,
मगर हाथ हमेशा खाली रहते हैं।

दुनिया में सबको दरारो में से
झांकने की आदत हैं,
दरवाजे खुल रख दो,
कोई आस-पास भी नहीं दिखेगा।

चादर से पैर तभी बाहर आते है,
उसूलो से बडें जब ख्वाब हो जाते है।

तुम गिरो तो मैं संभालूँ।
मैं गिरूँ तो भी,
मैं खुद को छोडकर,
तुम्हे संभालूँ।
अजीब है इश्क की रवायतें...

आ लिख दूँ कुछ तेरे बारे में...।
मुझे पता है की तू रोज ढूँढती है,
खुद को मेरे अल्फाजों में...।

मैं झुकता हूँ आँसमा बन के...
जानता हूँ जमीन को उठने की आदत नहीं... ।

यूँ ही एक छोटी सी बात पे
ताल्लुकात पुराने बिगड गये
मुद्दा ये था कि सही ‘क्या’ है?
और वो सही ‘कौन’ पर उलझ गये…।

सर्द रातों की तन्हाई में...
दिल अपना कुछ यूँ बदलता हैं,
कुछ उनका लिखा दोहराते हैं,
कुछ अपना लिखा मिटाते हैं॥

है रूह को समझना भी जरूरी,
महज हाथों को
थामना साथ नहीं होता...।

गुजर गया आज का दिन भी
यूं ही बेवजह
ना मुझे फुरसत मिली
ना तुझे ख्याल आया...।

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From Editor's desk

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