मेरे मेहबूब कयामत होगी
आज रसवां तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरी नजरे तो गिला करती है
तेरे दिल को भी सनम तुझ से शिकायत होगी
मेरे मेहबूब कयामत होगी
तेरी गली मैं आता सनम
नग्मा वफा का गाता सनम
तुझ से सुना ना जाता सनम
फिर आज इधर आया हू मगर
ये कहने मैं दिवाना
खत्म बस आज ये वहशत होगी
मेरे मेहबूब कयामत होगी
मेरी तरह तू आहे भरे
तू भी किसी से प्यार करे
और रहे वो तूझ से परे
तुने ओ सनम, ढाए हैं सितम
तो ये तू भूलना जाना
के न तुझ पे भी इनायत
मेरे मेहबूब कयामत होगी
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अजीब दास्ताँ हैं ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
फ़िल्म - दिल अपना और प्रीत पराई -
1960
गायिका - लता मंगेशकर
संगीत - शंकर-जयकिशन
गीत - शैलेन्द्र
अजीब दास्तां है ये
कहाँ शुरू कहाँ खतम
ये मंज़िलें है कौन सी
न वो समझ सके न हम
अजीब दास्तां...
ये रोशनी के साथ क्यों
धुआँ उठा चिराग से -२
ये ख़्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख़्वाब से
अजीब दास्तां...
किसीका प्यार लेके तुम
नया जहाँ बसाओगे -२
ये शाम जब भी आएगी
तुम हमको याद आओगे
अजीब दास्तां...
मुबारकें तुम्हें के तुम
किसीके नूर हो गए -२
किसीके इतने पास हो
के सबसे दूर हो गए
अजीब दास्तां...
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