Saturday, October 22, 2016

शायरी : भाग २

रिश्ता वही कायम रहता है
जो दिल से शुरू हो
ज़रूरत से नही

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मोलाचे वाटतात मला
तुझ्या सोबतचे क्षण
पण ते निघून जातात
पुन्हा बेचैन होते मन

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मुक्या हुंदक्याचे गाणे
कोणाला कळावे,
छळावे स्वता: ला
निखारे क्षणांचेच व्हावे......
जडे जीव ज्याचा
त्याच्याच का रे
नशीबी असे घाव यावे.......

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नाराज़ ना होना कभी यह सोचकर कि
काम मेरा और नाम किसी और का हो रहा हैं।
यहाँ सदियों से जलते तो घी और  रुई हैं
परंतु लोग कहतें हैं कि दीया जल रहा है।

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काश ऐसी बारिश आये
जिसमें अहम डूब जाए
मतभेद के किले ढह जाएं
घमंड चूर चूर हो जाए
गुस्से के पहाड़ पिघल जाए
नफरत हमेशा के लिए दफ़न हो जाये
और हम सब "मैं" से "हम" हो जाएं ......

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रिश्तों को मजबुत किजीए,
मजबुर नहीं......

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चलो...
दौलत की बात करते हैं ..
बताओ तुम्हारे....
दोस्त कितने हैं .....!!

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कहते हैं रिश्ते
नशा बन जाते हैं
कोई कहते हैं रिश्ते
सजा बन जाते हैं
हम कहते है
रिश्ते निभाओ सच्चे दिल से
तो वे रिश्ते ही जीने की
वजह बन जाते है

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जब भी वो उदास हो
उसे मेरी कहानी सुना देना,
मेरे हालात पर हंसना
उसकी पुरानी आदत है..

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झुको उतना की जितना सही हो.
बेवजह झुकना दुसरे के अहम् को केवल बढ़ावा देता है. ..........✍

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मुद्दतें हो गयीं हैं चुप रहते-रहते,
कोई सुनता तो हम भी कुछ कहते
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मिट्टी के दीपक सा है ये तन..
तेल खत्म ,खेल खत्म....

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रात्रभर गाढ झोप लागणं
याला सुद्धा नशीब लागतं...
त्याच्या साठी सुद्धा *'ईमानदारी'* च आयुष्य जगायला लागतं...

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दीवानगी मे कुछ एसा कर जाएंगे महोब्बत की सारी हदे पार कर जाएंगे
वादा है तुमसे
दिल बनकर तुम धड़कोगे और सांस बनकर हम आएगे

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वो रात दर्द और सितम की रात होगी
जिस रात रुखसत उनकी बारात होगी
उठ जाता हु मैं ये सोचकर नींद से अक्सर के
एक गैर की बाहों में मेरी सारी कायनात होगी…

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तू चाँद मे सितारा होता
आसमान के एक आशियाना में एक आशियाना हमारा होता
लोग तुम्हे दूर से देखते
नज़दीक से देखने का हक़
बस हमारा होता

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दिल पे क्या गुज़री
वो अनजान क्या जाने
प्यार किसे कहते है
वो नादान क्या जाने
हवा के साथ उड़ गया
घर इस परिंदे का
कैसे बना था घोसला
वो तूफान क्या जाने

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सुना था..
मोहब्बत मिलती है,
मोहब्बत के बदले |
हमारी बारी आई तो,
रिवाज हि बदल गया....?

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चल कोई ‎बात‬ नही
तू जो मेरे साथ‬ नहीं,
मैं ‎रो‬ पडू तेरे जाने के बाद इतनी भी तेरी ‎औकात‬ नहीं..

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पटले न जगाशी माझे
मी साऱ्यांना नडलो आहे
मलाच अचंबा वाटे
मी कसा घडलो आहे
मी सुखवस्तू करूनेचे
पाहिले हिशेबी डोळे
तेव्हा मी त्त्यांचे दारी
शरमींदा रडलो आहे

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शहर में सब को कहाँ
मिलती है रोने की फ़ुरसत।
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ
हँसने-हँसाने से रही।।

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इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं,
आदमी हूँ मैं...

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आशियाने बनें भी
तो कहाँ जनाब...
जमीनें महँगी हो चली हैं और
दिल में लोग जगह नहीं देते..!!

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ज्यादा ख्वाहिशें नहीं
ऐ ज़िन्दगी तुझसे
बस तेरा हर अगला लम्हा
पिछले से बेहतरीन हो l

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मिज़ाज -ए-मौसम गुलज़ार कर गये ,
उफ्फ वो मुस्कुराकर कर्ज़दार कर गये !

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सोचते हैं कि कुछ ऐसा लिखा जाये,,,
जिसे पढ़कर कोई रोये भी नहीं ... और कोई रात भर सोये भी नहीं !!

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​*Life*  जितनी *Hard* होगी
आप उतने ही *Strong*बनोगे
आप जितने *Strong* बनोगे
*Life* उतनी ही *Easy* लगेगी

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आयुष्यात जास्त सुख मिळाले तर वळून बघ......
मी तुझ्यामागे असेन
पण दु:खामध्ये वळून बघू नकोस कारण तेव्हा मी तुझ्यासोबतच
असेन

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प्रत्येक गोष्ट जर शब्दांतून
व्यक्त करता आली असती,
तर श्वास, नजर आणि स्पर्श
ह्याला किंमत राहिली नसती.....

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तेरे शहर के कारीगर
बङे अजीब हैं ए दिल,
काँच की मरम्मत करते हैं
पत्थर के औजारों से

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ना जानें क्यूँ रेत की तरह
निकल जाते है वो लोग..
जिन्हे जिंदगी समझ कर हम खोना नहीं चाहते..

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तुम नफरतों के धरने,
क़यामत तक ज़ारी रखो,
मैं मोहब्बत से इस्तीफ़ा,
मरते दम तक नहीं दूंगी..

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बेगानों से गुजर जाते है
कोई बात नहीं होती,
हम उनसे रोज मिलते हैं
मगर मुलाक़ात नहीं होती,
सूखे बंजर खेत जैसी
जिंदगी बेहाल है,
घटाएं घिर तो आती है
मगर बरसात नहीं होती..

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उनकी चाल ही काफी थी इस दिल के होश उड़ाने के लिए,
अब तो हद हो गई जब से वो पाँव में पायल पहनने लगे..

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न तेरी अदा समझ में आती है
ना आदत ऐ ज़िन्दगी,
तू हर रोज़ नयी सी,
हम हर-रोज़ वही उलझे से..

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अरे बददुआये …
ये किसी ओर के लिए रख,
मोहब्बत का मरीज हूँ,
खुद ब खुद मर जाऊँगा…

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अक्ल कहती है की मारा जाएगा,
इश्क कहता है की देखा जाएगा..

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अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का,
सुकून ढूंढने चले थे,
नींद ही गंवा बैठे”…..!!!

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तेरी ख़ुशी की खातिर
मैंने कितने ग़म छिपाए
अगर मैं हर बार रोता
तो तेरा शहर डूब जाता

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मुझे ना ढूंढ
ज़मीन-ओ-आसमां की गर्दिशोंमें,
मैं अगर तेरे दिल में नहीं
तो कहीं भी नहीं…

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उसने पूछा …
कोई आखरी ख्वाइश ?
ज़ुबान पे फिर ” तुम ” आ गया

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ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी भी सीख ले
ऐब न हों..
तो लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते...

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क्यों याद करेगा कोई बेवजह मुझे अये खुदा,
लोग तो बेवजह तुम्हे भी याद नहीं करते…

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मेरी ज़रुरत और ख्वाहिश दोनों तुम हो......
और अगर रब की कभी मेहरबानी हुई ...
तो कोई एक तो पूरी होगी!....

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हमको समुन्दर का ख़ौफ़ न दो
हमने हँसते गालों में भँवर देखे है.

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हम तो सोचते थे
कि लफ्ज़ ही चोट करते हैं;
मगर कुछ खामोशियों के ज़ख्म
तो और भी गहरे निकले।

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एक ही समझने वाला था मुझे,
अब तो वो भी समझदार हो गया है !!!!

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बना लो उसे अपना
जो दिल से तुम्हे चाहता है।
खुदा की कसम ये चाहने वाले बडी मुश्किल से मिलते है.......

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वो तब भी थी, अब भी है, और हमेशा रहेगी,
ये मोहब्बत है, पढ़ाई नहीं जो पूरी हो जाए...

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दर्द की भी अपनी एक अदा है
ये तो सहने वालों पर ही फ़िदा है।

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इल्ज़ाम तो हर हाल में
काँटों पे ही लगेगा,
ये सोचकर अक्सर फूल भी
चुपचाप ज़ख्म दे जातें हैं !

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