Tuesday, October 25, 2016

शायरी : भाग ४


ना जाने कौन
मेरे हक़ में दुआ पढता है,
डूबता भी हु
तो समुन्दर उछाल देता है !!

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इंसान की असल में
मौत उस वक्त होती है,
जब वो किसीके दिल और दुआओं में से निकल जाता है !!

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अगर तू मौत है तो फिर...
मेरा मरना जरूरी है....✍

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मला चांदणीवर लिहायचे असते ,
पण नेमकी समोर तू येते...
मग काय चांदणी सोडून तुला
ओळीत बसवणे सुरु होते...

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गलत सुना था की,
इश्क़ आँखों से होता हे
दिल तो वो भी ले जाते है,
जो पलके तक नही उठाते है

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पूछने से पहले ही
सुलझ जाते हैं सवाल !!
कुछ आँखें इतनी
हाज़िर जवाब होती हैं !!

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ख़ुद न छुपा सके
वो अपना चेहरा नक़ाब में....
बेवज़ह हमारी आँखों पे
इल्ज़ाम लग गया..

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जिंदगी आसान नहीं होती,
इसे आसान बनाना पड़ता है.....
कुछ 'अंदाज' से,
कुछ 'नजर अंदाज 'से!!

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तू चाँद और मैं सितारा होता, आसमान में एक आशियाना हमारा होता,
लोग तुम्हे दूर से देखते,नज़दीक़ से देखने का,
हक़ बस हमारा होता..!!

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*काश मैँ लौट जाऊँ*
*बचपन की उन्हीँ गलियोँ मेँ.....*
*जहाँ न कोई जरूरत थी*
*और न कोई जरूरी था....*

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मन माझे वळती
तुझ्या वाटेवरती
भीती त्याला जरी
पुन्हा दगा मिळण्याची

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पता नही होश मे हूँ.....
या बेहोश हूँ मैं.....
पर बहूत सोच .......
समझकर खामोश हूँ मैं

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उसने मेरे हाथ थामा और पूछा
*मोहब्बत या ज़रूरत...???*
मैंने उसे सीने से लगाया और कहा *आदत*

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जी लो हर लम्हा ,
बीत जाने से पहले ।।
लौट कर यादें आती है,
वक़्त नहीं...

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कुछ तो बात है...
तेरी फितरत में ऐ दोस्त,
वरना तुझे याद करने की खता,
हम बार-बार न करते....

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किस्मतवालों को ही मिलती है...
पनाह दोस्तों के दिल में
यूँ ही हर शख्स...
जन्नत का हक़दार नहीं होता

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मुझे दोस्तों के साथ देखकर
लौट जाते है गम..!!
कहते है इसका
कुछ बिगाड नहीं सकते हम!

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फ़ुर्सतें मिलें जब भी
रंजिशें भुला देना ,
कौन जाने सांसों की
मोहलतें कहाँ तक है ......

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तू सोबत असलीस की
मला अजून काही लागत नाही  
तू अशीच हसत राहा
मी अजून काही मागत नाही...!

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मला उत्तर मिळायचं
तिच्याकडे पाहिल्यावर....
आणि तिला प्रश्न पडायचा
मी पाहत राहिल्यावर...

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हमारी ❝ कदर ❞ उन्हें
तब होगी जब
मतलब के ❝ रिश्ते ❞
और रिश्तों का ❝ मतलब ❞ समझ आएगा..!

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कहाँ-कहाँ से इकट्ठा करूँ,
"ऐ ज़िंदगी" तुझको.....??
जिधर भी देखूँ,
"तू-ही-तू" बिखरी पड़ी है

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"नीलाम कुछ इस कदर हुए, बाज़ार-ए-वफ़ा में हम
आज.
बोली लगाने वाले भी वो ही थे,
जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे

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कांटो सी चुभती है तन्हाई
अंगारों सी सुलगती है तन्हाई
कोई आ कर हम दोनों को ज़रा हँसा दे
मैं रोता हूँ तो रोने लगती है तन्हाई
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उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है
जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है
दिल टूटकर बिखरता है इस कदर
जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है

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दर्द से हाथ न मिलाते तो और क्या करते
गम के आंसू न बहते तो और क्या करते
उसने मांगी थी हमसे रौशनी की दुआ
हम खुद को न जलाते तो और क्या करते

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वक़्त नूर को बेनूर बना देता है
छोटे से जख्म को नासूर बना देता है
कौन चाहता है अपनों से दूर रहना पर वक़्त सबको मजबूर बना देता है

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दिल में है जो दर्द वो दर्द किसे बताएं
हंसते हुए ये ज़ख्म किसे दिखाएँ
कहती है ये दुनिया हमे खुश नसीब
मगर इस नसीब की दास्ताँ किसे बताएं

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वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए
वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए
कभी तो समझो मेरी खामोशी को
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें

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काश यह जालिम जुदाई न होती
ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती
न हम उनसे मिलते न प्यार होता
ज़िन्दगी जो अपनी थी वो परायी न होती
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दिल के टूटने से नही होती है आवाज़
आंसू के बहने का नही होता है अंदाज़
गम का कभी भी हो सकता है आगाज़
और दर्द के होने का तो बस होता है एहसास

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तुम्हारे प्यार में हम बैठें हैं चोट खाए
जिसका हिसाब न हो सके उतने दर्द पाये
फिर भी तेरे प्यार की कसम खाके कहता हूँ
हमारे लब पर तुम्हारे लिये सिर्फ दुआ आये

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हर वक़्त तेरे आने की आस रहती है
हर पल तुझसे मिलने की प्यास रहती है
सब कुछ है यहाँ बस तू नही
इसलिए शायद ये जिंदगी उदास रहती है

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सोचा याद न करके थोड़ा तड़पाऊं उनको
किसी और का नाम लेकर जलाऊं उनको
पर चोट लगेगी उनको तो दर्द मुझको ही होगा
अब ये बताओ किस तरह सताऊं उसे

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वो करीब ही न आये तो इज़हार क्या करते
खुद बने निशाना तो शिकार क्या करते
मर गए पर खुली रखी आँखें
इससे ज्यादा किसी का इंतजार क्या करते

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न जाने क्यों हमें आँसू बहाना नहीं आता
न जाने क्यों हाल-ऐ-दिल बताना नहीं आता
क्यों सब दोस्त बिछड़ गए हमसे
शायद हमें ही साथ निभाना नहीं आता

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दिल टूटा तो एक आवाज आई
चीर के देखा तो कुछ चीज निकल आई
सोचा क्या होगा इस खाली दिल में
लहू से धो कर देखा, तो तेरी तस्वीर निकल आई

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