Tuesday, October 25, 2016

शायरी : भाग ५


"नवस" करत बसण्यापेक्षा,
प्रयत्न करत रहा...
"नवं असं" काहीतरी घडेल.

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नकळत गुंतो जीव तिच्यात
मग वाढत जातो गुंता आठवणींचा कधी न सुटनाऱ्या गाठी सारखा

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शायरी उसी के
लबों पर सजती है!!
जिसकी आँखों में इश्क़ रोता हो.!!

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"खुद से ज्यादा संभाल
कर रखता हूँ
मोबाइल अपना...,
क्योंकि रिश्ते सारे
अब इसी में कैद हैं !!! "

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दर्द बनकर ही रह
जाओ हमारे साथ,
सुना है दर्द बहुत वक़्त तक
साथ रहता है..

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क्यों दिल मचलता है
तुम्हें पाने को अब तक,
जबकी बेबसी से
वो भी अनजान नहीं है!

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तुमको बहार समझकर
जीना चाहती था उम्रभर,
भूल गयी था की
मौसम तो बदल जाते है !!

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जिन्दगी दो लब्ज़ोंमे यूँ अर्ज है...
आधी कर्ज है, आधी फ़र्ज है...

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मोहबत को जो निभाते हैं
उनको मेरा सलाम है,
और जो बीच रास्ते में छोड़ जाते हैं उनको ये पैगाम हैं,
वादा-ए-वफ़ा करो तो
फिर खुद को फ़ना करो,
वरना खुदा के लिए किसी की ज़िंदगी ना तबाह करो..

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तेरी जगह आज भी
कोई नहीं ले सकता ,
पता नहीं इसकी वजह
तेरी खूबी है या मेरी कमी..!!

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छोटा है मुहब्बत लफ्ज,
मगर तासीर इसकी प्यारी है.
इसे दिल से करोगे तुम,
तो ये सारी दुनियाँ तुम्हारी है.

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मरणास कोण डरतो
आहेच तेही यायचे
स्वतःस मी बजावतो
तेव्हा तरी हसायचे

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नजर अंदाज करने की
कुछ तो वजह बताई होती,
अब में कहाँ कहाँ
खुद में बुराई ढूँढू …!

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नाराज़गियों को कुछ देर
चुप रह कर मिटा लिया करो,
ग़लतियों पर बात करने से
रिश्ते उलझ जाते हैं !

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मैंने दरवाज़े पे ताला भी
लगा कर देखा है,
ग़म फिर भी समझ जाते है की
मैं घर में हूँ !!��

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जिगर के दाग पर
दिल जार जार रोता है।
गम उसीको होता है
जिसका कोई होता है।

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सिखा ना सकी ...........
जो उम्र भर तमाम किताबे मुझे...
करीब से कुछ चेहरे पढ़े
और ना जाने कितने
सबक सीख लिए हमने...

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कदम रुक से गए आज,
फूलों को बिकता देख,...
वो अक्सर कहा करतीं थीं की 'मोहब्बत' फूलों जैसी होती है।

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तरस गए हैं तेरे लब से
कुछ सुनने को हम……
प्यार की बात न सही कोई शिकायत ही कर दे…

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तलाश कर मेरी कमी को
अपने दिल से
तकलीफ हो तो समझ लेना की रिश्ता अभी बाकी है

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क्या लूटेगा जमाना
खुशियों को हमारी..
हम तो खुद अपनी खुशियां
दूसरों पर लुटाकर जीते हैं..!!

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लफ़्ज़ों के बोझ से थक जाती है
ज़ुबाँ कभी-कभी,
पता नहीं ख़ामोशी मज़बूरी है या समझदारी.......!!!

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जिंदगी जला दी हमने
जब जैसी जलानी थी फराज..
अब धुऐं पर तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी..!

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बस 'खुद्दारी ही मेरी दौलत है'
जो मेरी 'हस्ती में रहती है..
बाकी 'जिंदगी तो फकीरी है' 
वो अपनी 'मस्ती मे रहती है..

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ज़िन्दगी तो हमारी भी,
शानदार थी...
मगर मोहब्बत ने,
बिच में शरारत कर दी...��

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मुझसे दोस्त नहीं बदले जाते,
चाहे लाख दूरी होने पर...
यहाँ लोगों के भगवान बदल जाते हैं,
एक मुराद ना पूरी होने पर...��
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